Disclaimer:
नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका हिंदी
हॉरर स्टोरी में हमारी कहानी काल्पनिक और सत्य घटना पर आधारित हो सकती है मगर
हमारा उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना अथवा अंधविश्वास फैलाना नहीं
बल्कि आपका एंटरटेनमेंट करना है इसलिए अगर कोई गलती हो जाये तो उसे इग्नोर करे और
हमारी कहानी के साथ आगे बढ़ें धन्यवाद !
रात के लगभग ढ़ाई बजे थे । मैं पैदल चलते चलते काफी थक चुका था । हवा बिलकुल भी नहीं चल रही थी । मुझे काफी पसीना आ गया था मेरी अंदर की बनियान काफी गीली हो गयी थी और माथे से भी पसीना निकल कर मेरे चेहरे के दोनों साइड टपक रहा था ।लेकिन यह पसीना मुझे पैदल चलने के वजह से नहीं आया था बल्कि डर और घबराहट की वजह से आया था । मेरे दिल की धड़कने और तेज़ हो गयी । मैंने खुद को संभालने की कोशिश की । मैंने कसम खायी थी चाहे जो भी हो जाये । मैं पलट कर नहीं देखूंगा । मैं जोर जोर से हनुमान चालीसा पढ़ने लगा मुझे हनुमान चालीसा ठीक से याद नहीं थी क्यूंकि मैं ज्यादा पूजापाठ नहीं करता लेकिन जो भी याद थी उसे तेज़ तेज़ जोर जोर से पढ़ने लगा अचानक एक जोर की चीख मेरे कानों में पड़ी जैसे किसी लड़की ने मेरे दाएं कान में कस कर चिल्लाया हो और तभी मेरी आँखों के आगे अँधेरा छा गया । मैं वही गिर गया
Horror sound effect
नमस्कार दोस्तों मैं हूं पंकज मैं मुंबई सेंट्रल के एक स्टील कंपनी में ऑफिस असिस्टेंट का काम करता हूं कहानी पिछले साल की है लगभग तीन चार महीने तक लगातार लॉक डाउन होने की वजह से मेरे सारे पैसे खत्म हो चुके थे अगर मुझे पहले से पता होता कि लॉक डाउन इतना लंबा चलेगा तो मैं गांव निकल जाता लेकिन मैं इंतजार करता रहा कि लॉक डाउन अब खुले अब खुले और तीन चार महीने बीत गए और वापस जाने के लिए ट्रेन की टिकट भी नहीं मिल रही थी, मेरे लिए सभी रास्ते बंद थे इसलिए मैंने यही पर समय बिताना बेहतर समझा मुझे गांव से भी वापस आने के लिए कॉल आ रही थी लेकिन गांव जाने का एक आदमी का किराया 5000 रुपये था, जोकि इतना ज्यादा था कि मैं वो खर्च नहीं उठा सकता था 5000 रुपये में तो मेरा परिवार एक महीना गुजारा लेता था यहाँ रहकर तो मैं फिर भी बच सकता था लेकिन अगर गाय भैंसों की तरह ठूसकर अगर ट्रक में गया तो जरूर कोरोना की मौत मरूंगा इसलिए मैंने यहीं रहना बेहतर समझा
हर तरफ बस इंसान की
मजबूरी का फायदा उठाकर लोग लुटने में लगे थे यह सोचकर मैंने अपना समय मुंबई
में ही निकाला अब लॉक खुल चुका था और कंपनियां चालू हो चुकी थी और काफी लंबे समय के बाद
ऑफिस खुलने की वजह से काम काफी ज्यादा बढ़ चुका था इसलिए
मैं दो-चार दिन से लगातार लेट हो रहा था मेरी जेब में पैसे ना होने की वजह से मुझे पैदल ही
आना पड़ा लगातार 4
महीने तक लॉक डाउन होने की वजह से मेरे सारे पैसे खत्म हो गए थे
मकान मालिक का किराया भी बाकी हो गया था रेलवे स्टेशन
तक पहुंचते-पहुंचते लगभग 1:30 बज चूका था I मैंने सोचा कि क्यों ना सुबह तक इंतजार कर लिया जाए सुबह 4:00 बजे की ट्रेन पकड़ कर मैं अपने घर
गोरेगांव स्टेशन निकल जाऊंगा काफी समय तक मैं वहीं स्टेशन
पर बैठा रहा फिर स्टेशन की सारी लाइटें एक एक करके बंद हो गयी
अब बस एक ही लाइट जल रही थी वहां कुछ ही देर में कुछ
भिखारी और टपोरी टाइप के लोग आ गए और एक एक सीट पकड़कर लेट गए जिसे सीट नहीं मिली
वह जमीन पर ही चद्दर बिछाकर लेट गया
मैंने देखा एक आदमी जो गन्दी सी जीन्स पहने हुए था ऊपर उसके बदन पर कोई भी कपड़ा नहीं था उसकी दाढ़ी बड़ी बड़ी थी उसके बाल भी काफी बड़े और बिखरे हुए थे ऐसा लग रहा था वह एक साल से नहाया नहीं है वह थोड़ा पागल टाइप का दिख रहा था इतनी गर्मी में भी वो कम्बल लेकर चल रहा था, मुझे देखते हुए वह मेरी तरफ धीरे धीरे बढ़ने लगा
मुझे थोड़ी घबराहट हुयी कि कहीं वो मुझे मारने न लगे मैं उस
सीट से उठ खड़ा हुआ, जहाँ बैठकर मैं अपने मोबाइल में
ब्राउज़िंग कर रहा था मेरे उठते ही वो उस सीट पर आकर ऐसे
लेट गया जैसे कि हर पब्लिक प्रॉपर्टी पर बस इन्ही लोगों का कब्ज़ा है उसने मुझे कुछ नहीं किया मैंने राहत की सांस ली फिर मैं पीछे की दीवार पर अपनी पीठ टिका कर खड़ा हो गया और फिर से
ब्राउज़िंग करने लगा, बीच बीच में मैं एक दो बार अपने चारो
तरफ भी देख लेता था
मुझे इस सन्नाटे में थोड़ा डर भी लग रहा था आज
शुक्रवार का दिन था मैंने न्यूज़ पढ़ी कि सेटरडे संडे भी लॉकडाउन रहेगा और कोई भी
ट्रेन या बस नहीं चलेगी ट्रेन और बस मुंबई की जान है जो
कभी बंद नहीं होती लेकिन अगर दोनों बंद हो जाए तो मुंबई पूरी तरह रुक जाती है
अब मेरे पास कोई ऑप्शन नहीं बचा था और मैंने उनकी तरफ देखा जहां 2-4 टपोरी एक साथ बैठे हुए थे और वह मुझे बार बार देख कर आपस में बातें कर रहे थे जैसे कि वह सब मुझे लुटने का प्लान बना रहे थे
तभी मैंने दो आदमियों को झोला टांगे पटरी के रास्ते से अपने घर की तरफ जाते देखा मैंने भी तय कर लिया कि यहां सुबह तक रुकने का कोई फायदा नहीं है क्योंकि मुझे सुबह में पैदल ही जाना पड़ेगा और अगर मैं यहां रुक गया तो हो सकता है यह लोग मेरे बचे पैसे छीन ले और मेरा मोबाइल भी छीन ले अभी मैंने 4 महीने पहले नया मोबाइल लिया था जो कि लगभग 15000/- का था काफी मशक्कत के बाद मैं एक नया मोबाइल ले पाया था इस वजह से मैं उसे खोना नहीं चाहता था
मैंने तय किया कि मैं भी इसी रास्ते से घर पैदल ही निकल जाता हूं चाहे
जितनी रात हो जाए रोड पर गाड़ियों की आवाज आने से ऐसा लगता है कि मुंबई अभी भी जाग
रही है और हमें जरा भी अकेलापन महसूस नहीं होता है ना ही कोई डर लगता है लेकिन आज
ऐसा हुआ था कि रोड पर से कोई गाड़ी की आवाज नहीं आ रही थी और सभी तरफ लाइटें बंद थी कहीं कहीं पर एक-दो ही लाइट जल रही थी जिससे मुझे थोड़ा डर
महसूस होने लगा और मैं उस रास्ते की तरफ देखने लगा जहां से वो लोग अपने
घर की तरफ निकले थे मैं भी घर की तरफ निकल पड़ा वो दोनों आदमी इतनी जल्दी कहाँ गायब हो गए कुछ पता नहीं चल रहा था दूर दूर
तक पटरी पर कोई नज़र नहीं आ रहा था
मुंबई में गोरेगांव स्टेशन में मैं अपने चाचा के साथ रहता हूं मेरे
चाचा सब्जी बेचने का काम करते हैं और मेरे गांव में मेरे मम्मी पापा और छोटी बहन रहते
है आर्थिक तंगी और मेरे शहर में एक अच्छा रोजगार ना मिल पाने की वजह से मैं मुंबई आया
था मुझे अपने चाचा के रिफरेंस से एक स्टील कंपनी में एक
ऑफिस असिस्टेंट का काम मिला था जहां मेरी सैलरी 15000 रुपये थी यहां काम करने की वजह से मैं कुछ पैसा अपने घर पर भी भेज देता था अब मेरे माता पिता काफी खुश रहते थे
मैं हॉरर फिल्में बहुत ज्यादा देखता हूँ ख़ास तौर पर विक्रम भट्ट की
फिल्में, इसलिए अंधेरे में अकेले चलने की वजह से मुझे एक डर
सा महसूस होने लगा और मुझे हॉरर फिल्मों के भूतों की शक्ल धीरे-धीरे याद आने लगी जिससे मेरी घबराहट और बढ़ने लगी मुझे अपनी
परछाई से भी डर लग रहा था और मुझे बार-बार ऐसा लग रहा था कि कहीं कोई भूत मेरे
सामने आकर न खड़ा हो जाए मेरे
रोंगटे खड़े हो चुके थे लेकिन मैं अपने कदम लगातार बढ़ाता ही जा रहा था
कुछ दूर चलने पर मुझे बरगद का घना पेड़ दिखा रेलवे स्टेशन के दोनों
तरफ कई सारे पेड़ होने की वजह से वहां अँधेरा और भी ज्यादा घना था मैंने लोगों से
सुना था बरगद के पेड़ पर भूतों का बसेरा होता है बगल में कब्रिस्तान रेलवे की दीवार
के उस पार साफ़ दिखाई दे रहा था जहाँ पर बहुत से क्रॉस उन कब्रों पर लगे हुए थे
मैंने तय किया चाहे जो भी हो जाए मैं पलटकर नहीं देखूंगा अब तक मैं कई स्टेशन पार
कर चूका था मैं थोड़ा तेज़ चल रहा था अब मैंने खार स्टेशन पार किया था
पैदल चलते चलते मैं काफी थक गया था क्यूंकि मैं कभी इतना ज्यादा पैदल
नहीं चलता हवा बिलकुल भी नहीं चल रही थी मुझे काफी पसीना आ गया
था मेरी अंदर की बनियान काफी गीली हो गयी थी और माथे से भी पसीना निकल कर मेरे चेहरे के दोनों साइड टपक रहा था लेकिन यह पसीना मुझे पैदल चलने के वजह से
नहीं बल्कि डर और घबराहट की वजह से आया था
मैं जोर जोर से हनुमान चालीसा पढ़ने लगा मुझे हनुमान चालीसा ठीक से याद नहीं थी क्यूंकि मैं ज्यादा पूजापाठ नहीं करता लेकिन जो भी याद थी उसे तेज़ तेज़ जोर जोर से पढ़ने लगा अचानक एक जोर की चीख मेरे कानों में पड़ी जैसे किसी लड़की ने मेरे दाएं कान में कस कर चिल्लाया हो और तभी मेरी आँखों के आगे अँधेरा छा गया मैं एकदम से घबरा गया मेरे दिल की धड़कने भी बहुत तेज़ हो गयी और मैंने अपने चलने की स्पीड बढ़ा दी
2-4 मिनट बीता ही था कुछ दूर चलने के बाद मुझे ऐसा लगा की अब सब ठीक हो गया मैंने राहत की सांस ली कि तभी मुझे ऐसा महसूस हुआ कि किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा मैं थोड़ा रुक गया ऐसा लगा कि कोई मुझसे कुछ बोलना चाहता है मुझसे कुछ कहना चाहता है लेकिन मैंने उसे इग्नोर किया और पलट कर नहीं देखा मैंने धीरे-धीरे हनुमान चालीसा पढ़ना चालू किया फिर कुछ लोगों की चीखने की आवाज़ मुझे सुनाई देने लगी जिसमे कुछ औरतें भी थीं मुझे वैसे भी किसी का रोना पसंद नहीं है खास तौर से किसी औरत का इसलिए मुझे कफी बुरा लग रहा था और बार बार पलटकर देखने का मन कर रहा था फिर एकदम से सन्नाटा छा गया कुछ दूर चलने के बाद मुझे वह आवाज़ें फिर से सुनाई पड़ने लगी जो अब और भी तेज़ सुनाई दे रही थी ऐसा लग रहा था की एक दो नहीं बल्कि 40-50 लोगों की भीड़ एक साथ हो
कोई बोल रहा था-“भैया.. भैया मुझे बचा लो, मुझे घर ले चलो मेरा खून काफी बह चूका है अब मैं नहीं बचूंगी मेरा 6 महीने का बच्चा है मेरी पति अपंग है मेरे बाद कौन चलाएगा मेरा परिवार” कोई दर्द से चिल्ला रहा था-“कोई मुझे बचा लो मैं अभी मरना नहीं चाहता मेरी अभी अभी शादी हुयी है मेरे बूढ़े माँ बाप को कौन सहारा देगा मैं ही उनका इस बुढ़ापे का आखिरी सहारा हूँ”
कोई औरत रोते हुए बोल रही थी-“भैया मैं मरना नहीं चाहती जब तक
मेरी बेटी की शादी नहीं हो जाती, मेरे पति नहीं हैं मेरे बाद कैसे होगी मेरी
बेटी की शादी, कोई मेरी मदद करो और
वह बेबसों की तरह चिल्ला चिल्ला कर रोने लगती है
और एक ही जगह पर कई सारे आदमी और औरत काफी जोर जोर से रोए जा रहे थे कोई दर्द
से कराह रहा था कोई रो रहा था
सभी मदद की गुहार लगा रहे थे उनकी आवाज में एक दर्द था मैंने हनुमान
चालीसा पढ़ना चालू रखा, उनकी बातों को इग्नोर किया, लगातार आगे बढ़ता रहा और पलटकर नहीं देखा
काफी देर चलने के बाद मुझे महसूस हुआ कि वह आवाजें बिल्कुल बंद हो गई मैं लगातार आगे बढ़ता रहा कुछ देर बाद मैंने देखा कि एक स्टेशन आने वाला है जहाँ कुछ लाइट्स जल रही थी मैंने राहत की सांस ली मैं लगातार आगे बढ़ता रहा फिर कई स्टेशन निकल गए
लगभग 1 घंटे के बाद गोरेगांव स्टेशन आ गया है मैं तब तक हनुमान चालीसा पढ़ता रहा जब तक कि मैं गोरेगांव स्टेशन नहीं पहुंच गयाI स्टेशन के बाहर निकलते ही मैं सामने वाले हनुमान जी के मंदिर गया जूते उतारे और घंटा बजाया और पेट के बल लेटकर दंडवत प्रडाम किया और उन्हें धन्यवाद दिया फिर पैदल ही घर निकल गया मैं काफी थक चूका था घर पहुंचते ही मैंने अपने जूते निकाले, चटाई बिछाई और सो गया I
मैं अगले दिन सुबह 11:00 बजे उठा अभी भी मैं कल रात के
वाकये को भूल नहीं पाया था अभी भी वो औरतों और लड़कियों के रोने का दर्द मेरे कानो
में गूंज रहा था मैं जल्दी से फ्रेश हुआ फिर मैंने कॉफी बनायीं फिर लैपटॉप निकल कर
सर्चिंग में लग गया, आखिर ऐसा क्या हुआ था वहां? क्यों आती हैं आज भी औरतों और बच्चों के चीखने चिल्लाने की आवाज़? मैंने पाया कि मुंबई बॉम्ब ब्लास्ट में जो लोग मरे गए थे यह उन्ही लोगों
की रूहें हैं जो आज भी वहां भटकती हैं और मदद की गुहार लगाती हैं कुछ लोगों ने
लिखा था यह सब बकवास है
दोस्तों इंसान की इच्छाशक्ति
उसकी सबसे बड़ी ताकत होती है मैंने अपने डर और इमोशन पर काबू करके यह जीत हासिल की
थी और एक बार भी मैंने पलट कर नहीं देखा था मैं खुद को काबू करके लगातार आगे
बढ़ता रहा इस वजह से मैं अपने घर तक पहुंच पाया
दोस्तों आप कोई भी कार्य करें तो अपनी इच्छाशक्ति को काफी मजबूत रखें जिससे आप अपने कार्य में सफलता जरूर पाएंगे यह कहानी आपको कैसी लगी कमेंट सेक्शन हमें जरूर बताएं
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Disclaimer: इस कहानी का मकसद किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना
नहीं है यह कहानी Entertainment purpose से बनाई गई है जो कि
मात्र एक कल्पना पर आधारित है
तो मिलते हैं एक और नए एपिसोड में एक नई कहानी के साथ तब तक के लिए
सतर्क रहिए सुरक्षित रहिए
जय हिंद
Written By
Sandeep Kumar Sunder
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